प्रिये
प्रिये
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सो भी जाओ प्रिये अब , होती जाये रात
ऊषा बेला मिले हम ,करे मधुर हम बात
छिपा चाँद भी गगन में, चंदिका के आगोश
भूल गया खुद को जो,नही दिवस का होश ,
सर्द बहुत हो रही है , काँप रहा है चाँद
काप रही है रजाई , वूलन रहे है याद
जकड़ गये है सितारे , छिपे मेघ के बीच
रवि का पाकर ताप वो , दिखे नेह से सींच
मारे पारा हाड़ को , नही पास हो आग
यही दरिद्रता दीन की , मुख से डाले झाग