प्रिये जब दूर जाते हो
प्रिये जब दूर जाते हो,अधिक तब पास होते हो ।
अकेली मैं नहीं रहती,तुम्हीं अहसास होते हो।
इधर देखूँ, उधर देखूँ, तुम्हें पाऊँ जिधर देखूँ-
विरह की आग में तपकर,प्रणय शुचि हास होते हो।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली
प्रिये जब दूर जाते हो,अधिक तब पास होते हो ।
अकेली मैं नहीं रहती,तुम्हीं अहसास होते हो।
इधर देखूँ, उधर देखूँ, तुम्हें पाऊँ जिधर देखूँ-
विरह की आग में तपकर,प्रणय शुचि हास होते हो।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली