प्रिया बावरी
कविता
हो राधा मीरा की जैसी,तुम कान्हा की दीवानी l
है चल चितवन है चन्द्रवदन, तुम अलबेली मस्तानी ll
हो तितली सी पग है नलिनी,हो इन्दु जमीं की रानी l
मृदु मुस्कान कुसुम के जैसा,औ’ तेरी चुनरी धानी ll
लब पंखुड़ी और कमलनयन, रेशम जुल्फों का बादल l
बिंदी सूरज की लाली सी,श्यामल आंखों का काजल ll
विमल ह्रदय औ’ गाल गुलाबी,इंद्रधनुष सा है आंचल l
पास बुलायें सुब्हो शामें,छन-छन कर तेरी पायल ll
सुन तो मोरे प्रिया बावरी,आ बन जा तू हमजोली l
मेरे दिल मधुवन में आ कर,खेलों जी भर के होली ll
चाल सलोनी हिरनी सी है,फ़िर भी हो तुम तो भोली l
दिल में मेरे आ रंगे तुम,चाहत की बन रंगोली ll
अमृत अभय मधु वैभव तुम में,भूमि तुम्ही रब की बरकत l
नव बसंत सौगात तुम्हीं से,मंजु धरा की हो जन्नत ll
मधुर कसक है अन्तर्मन में ,उस दीवानी की हसरत l
दामन खुशियों से भरी रहें,की रब से इतनी मन्नत ll
✍ दुष्यंत कुमार पटेल