प्रियतम
कोई राह बता दे मुझको कैसे मैं प्रियतम को पाऊँ,
चाँद उतारूँ धरती पर मैं या अम्बर से तारे लाऊँ।
प्रियतम मेरे आसपास हों हरपल उनका साथ रहे ,
फूलों की बारिश कर दूँ या उनके लिए बहारें लाऊँ।
दरिया की मौजों पर कश्ती, कश्ती में मदहोशी छाए,
एकदूजे में हम खो जाएँ या फिर उसे किनारे लाऊँ।
गीत लिखूँ अधरों पर उनके, सुंदरता का गान करूँ,
बिन मौसम बरसात करा दूँ सतरंगी फुहारें लाऊँ।
“दीपक” सबकी अपनी ढफली सबका अपना राग है,
प्रेम की बंसी सभी बजाएँ क्यों ना मैं इकतारे लाऊँ।
दीपक ‘दीप’ श्रीवास्तव
पालघर, महाराष्ट्र