प्रियतमा की याद
प्रियतमा की याद
गहरा रखता है अर्थ इस खोज का स्मृति से
सूने वन मे रात्रि समय ध्वनि गूंज जाती जैसे
डूबा हुआ उदासी मे,याद आती बिखर-बिखर
उनका नाम, लिखें जैसे स्मृति-पट पर अक्षर
उन अक्षर को मिटाना और दुष्कर भूल जाना,
जर्जर दिल पर चिन्ह छोड़े,धुँधला-सा बेगाना
क्या करें? उन्होंने विस्मृति में समाया हम को
कैसे भुलाये उनको, न मिटने वाली यादों को
जगा न सके उनके मन में वह स्मृतियाँ प्यारी
जला न सके उन में कोमल, निर्मल चिंगारी
उदासी और व्यथा जब मन को आकर घेरे
नाम याद कर लेते उनका दोहराते धीरे-धीरे
कहते ख़ुद से-याद उनकी अब, जब भी आती
मेरे हृदय मे बसती हैं,लाख चाहे,न मिट पाती
प्यार किया उनको और करता रहूँगा अब भी
दिल मे उसी प्यार की लपटे धधक रही अब भी
प्यार उनको बेचैन करे,नहीं चाहता गुज़रे भारी
मूक-मौन हूँ,अर्ज हे भगवान,याद आये हमारी
हिचक तो,कभी जलन भी,मेरे मन को दहकाये
प्यार किया था सच्चे मन से, भुला कैसे पाये
उदास मन से, मै विह्वल स्वर लेकर टहलता
जैसे धरा के प्रकाश को अँधेरा रहा निगलता
उदास सितारे,संध्या के तारे, चिन्तन जगाके
सोये हृदय में मद्धिम सी लौ का दीपक जलाके
उन्हें ढूँढ़ने को गहरे से मन में कसक जगाये
प्रियतमा की याद तब दिल बार-बार दिलाये
सजन