प्रियतमा और कॉफी
प्रियतमा और कॉफी
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ए वक्त ले चल मुझे –वहाँ
जहाँ सुकून मिले, कुछ पल दिल को,
इंतजार का वक्त खत्म होता ही नही,
बैठे -बैठे —यहाँ…..,
समय जैसे थम सा गया हो,
वक्त जैसे ठहर सा गया हो,
पर –वो, आये नहीं अभी तक,
वादा करके…..
लगता है –मैं ही आ गया हूँ,
समय से पहले….
या — घड़ी बंद हो गई होगी उनकी,
संध्या बेला भी निशा में बदल गई,
और,शरीर में कम्पन सी होने लगी थी,
यह ठंड का एहसास था —या
उनके इंतजार का….,
सामने रखी कॉफी भी सर्द हो गई,
इंतजार करते करते..,
उनका….,
पर वो नही आये –वादा करके,
पीने को साथ में मोहब्बत वाली कॉफी,
ऐ वक्त ले चल मुझे —वहाँ,
जहाँ सुकून मिले –कुछ पल दिल को.. ||
शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली -पंजाब
©स्वरचित मौलिक रचना