प्रितक व्यथा (हास्य कविता)
किये अभगला प्रीत केले तों
आब भोग प्रितक तों दण्ड
बड़े निक छलहू तोहर प्रेयसी
बड़े रहौ ने प्रेम क घमंड !!
ई प्रेम ककर भेेले अहि जग में
जे तोहर प्रेम नै भेटलौ तौरा।
जकरा देलें तों फुलक गुच्छा
बैह मारि देलको मुंहे हथौड़ा!!
वोही छोड़ी के चक्कर में तों
बनि गेलें लोफर आर लुच्चा ।
सनटिटहा सन् देह लगे छौ
चलि फटीचर के धेले समुच्चा !!
धूर्र जाऊ प्रेम पर गिरो ठनका
प्रेम सनक किछु नै अधलाह।
राति भरि कनला कका आ
भिंसवरा में जोड़ स बजलाह !!
दीपक झा रुद्रा
कवि /शायर;मैथिली,हिंदी उर्दू।