प्रार्थना
दोनों करि को जोरि के, तव करूँ प्रणाम
मन लागे श्री चरण में ,हृदय रहे तेरा ध्यान ||
कर्ता धर्ता सृष्टि के, कारण कुल संसार
कर्म फल देते हमें, भव के तारणहार ||
करता तो बस एक ही, भिन्न भिन्न हैं नाम,
भक्ति फल के कारण ही ,बहु नाम रूप स्थान ||
लिया शरण निज आपनी, दिया ज्ञान अनमोल
वरद हस्त आशीष से , दौलत मिली अतोल ||
श्री चरण में शीश झुका, चाहूँ यही वरदान
दृष्टि दया की राखियो, दाता दया निधान ||