प्रार्थना
श्री कृष्ण ऐसा ज्ञान दो,
मेरी पृथक पहचान हो।
धुन वेणु की कोई सुभग,
भर दो सहज कर दो अलग।
धुन सुन हुलस यह मन उठे,
पुलकित हृदय क्षण-क्षण उठे ।
धेरे न मद – बंधन हमें।
निज कर्म में ही हम रमें ।
चंचल हृदय यह धीर हो,
अन्तः कुशल गंभीर हो।
मनमोहना बस कामना,
मानस फले सद्भावना!
©ऋतुपर्ण