प्रारब्ध
प्रारब्ध जब तय है हमारा
तो फिर देर क्यों है?
गर उजाला ही मयस्सर है मुझे
तो फिर अंधेर क्यों है?
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
प्रारब्ध जब तय है हमारा
तो फिर देर क्यों है?
गर उजाला ही मयस्सर है मुझे
तो फिर अंधेर क्यों है?
-सिद्धार्थ गोरखपुरी