प्रारब्ध
एक बार मैं वाराणसी से गोरखपुर के लिए बस में बैठ कर चला तो उस बस के परिचालक ने जो 10-12 सवारियां बैठी थी उनसे पैसे ले लिए और टिकट की पर्ची भी नहीं दी मैंने सोचा कि शायद रास्ते में बाद में दे देगा फिर वह परिचालक और चालक दोनों बस के बोनट और बस के डैश बोर्ड पर शराब की बोतल , गिलास और कुछ चखना लेकर बैठ गए और जाम पर जाम चढ़ाने लगे प्रत्येक जाम के बाद हमारी बस की रफ्तार 10 किलोमीटर शराब के प्रति जाम की दर से तेज होती जा रही थी जो कि 50 – 60 किलोमीटर प्रति घंटा से आरंभ होकर अब 90 – 100 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुंच गई थी । उस समय बस के कंपन , उसकी खिड़कियों के खड़ खड़ शोर से हम सभी यात्री भयभीत थे बस तेजी से चली जा रही थी । तभी मैंने देखा कि बस से थोड़ी दूरी पर एक जीप चलने लगी और उसमें बैठे पुलिस वालों ने बस को रुकने का इशारा किया , रुकते रुकाते कुछ किलोमीटर चलकर बस रुक गई उसमें उस जीप में से उतरे अधिकारियों ने उन उस बस के चालक एवं परिचालक को गिरफ्तार कर लिया । उन अधिकारियों ने बताया कि आप लोगों के लिए पीछे से एक बस आ रही है उसमें आपको बैठाया जाएगा । कुछ देर बाद हम लोग निश्चिंत होकर दूसरी प्राइवेट बस में बैठ कर चल पड़े ।
धीरे-धीरे रात घिर गई । अब अब हमारी बस थोड़ी – थोड़ी दूर पर कुछ – कुछ देर के लिए रुकने लगी हम लोग इससे पहले कि कुछ समझ पाते हमें बस में बकरियों की आवाज सुनाई देने लगी क्योंकि सवारियां कम थी अतः परिचालक के कहने पर हम 10 – 12 सवारियां बस के अगले हिस्से में बैठ गए और परिचालक ने बस की पिछली सीटोंं को बस के मध्य में ऐसे खड़ा करके लगा दिया जिससे बस के दो कंपार्टमेंट बन गए आगे की तरफ हम सवारियां बैठी थी और पीछे बकरियां थीं खैर हमें अपने गंतव्य को पहुंचना था और अगर इन बकरियों को ढोने के सहारे किसी का कोई फायदा हो जाता तो हमें इसमें कोई आपत्ति नहीं थी । वैसे भी अगले दिन बकरीद के त्योहार का मौका था अतः हम सवारियों ने ज्यादा विरोध नहीं किया । मैं बस की खिड़की वाली सीट पर बैठा था । फिर मैंने यह देखा कि जब थोड़ी – थोड़ी दूर पर हमारी बस रुकती थी तो सड़क के किनाारे ग्रामीण लोग झुंड में कुछ बकरियां लिए खड़े रहते थे तो कुछ बकरियां उन्होंंने गोद में उठा कर बस में लादने के लिए ले रखी थीं जिनको बस के पिछले दरवाज़े से अंदर भरा जा रहा था ।मैंने देखा कि यह बकरियों को बस केेेेे अंदर घुुसाने का कार्य जल्दी भी निपटाया जा सकता था लेकिन उस बस का परिचालक प्रत्येक बकरी को बस में अंदर चढ़ाने से पहले ग्रामीण से कहता कि इसे सड़क के किनारे खड़ा करो फिर वह उस बकरी को अपनी पूरी ताकत लगा कर
हुसड के एक जबरदस्त लात बकरी के पेट पर मारता था और जब बकरी जोर से बेें – बैैं , में मैं करती थी तो वह उसको बस में भर लेता था और हमारी बस चल पड़ती थी । मैंने परिचालक से पूछा कि तुम हर बकरी को चढ़ाने से पहले उसे लात क्यों मारते हो ?
वह बोला अरे साहब क्या करें यह साले मरी हुई बकरी भी अंदर गोद में रखकर चढ़ा देते हैं और फिर वहां पहुंच कर मुझसे मरी बकरी के बदले में जिंदा बकरी के पूरे पैसे मांगते हैं । यह कहते हुए पूर्व में इस प्रकार की मृत बकरी के एवज़ में किए हुए भुगतान की पीड़ा उस बस परिचालक के चेहरे पर झलक रही थी ।उन बकरियों के कुछ मालिक भी सवारी बनकर बस में सवार थे । कुछ देर बाद फिर एक जगह बस रुकी तो उसमें से कुछ लोग तेज़ी से एक झोपड़ी नुमा दुकान की ओर दौड़े जो कच्ची देसी शराब की दुकान थी , वे वहां से शराब की बोतलें खरीद कर बस में वापस आकर बैठ गए । उन लोगों के हाथ में देसी शराब की बोतलें थी और अब वह सब उत्साह से भरे नजर आ रहे थे । थोड़ी देर बाद ही वे लोग चलती बस में आपस में चिल्ला चिल्ला कर बातें कर रहे थे और शराब का सेवन कर रहे थे । इसी तरीके से बस हमारी चलती रही और बकरियां और भरती गयीं तथा हमारी बस के अंदर भरी बकरियों की बें बें , में में से गुंजायमान हो गई तथा बकरियों , उनकी मीगन व कच्ची देसी शराब की भयंकर बदबू एवं शोर से भर गई थी।
यह घटना उन दिनों की है जब इस संसार में शायद PeTA का अस्तित्व नहीं था । उस दिन मैं उस परिचालक को मृत्यु के पश्चात आए शरीर में परिवर्तनों को पहचान कर जिंदा और मुर्दा बकरी को प्रमाणित करने का बेहतर चिकित्सीय फर्क समझा सकता था और उन बकरियों को लतियाये जाने से बचवा सकता था , पर यह समझना उस पियक्कड़ परिचालक की बुद्धि से परे था ।
मैं नहीं जानता था कि वह बकरियां अपने किस प्रारब्ध के फलस्वरूप जब बकरीद के अवसर पर कटने जा ही रही थीं तो फिर क्यों वह उस बस परिचालक की लात के प्रहार को भी दंड स्वरूप भोग रही थीं ।