प्रायश्चित
क्यूँ भूला है अपनी राह पथिक ?
मरीचिका के भ्रम में भटका हुआ ,
लालसा – वासना छद्म में अटका हुआ ,
तर्क को कुतर्क से नष्ट करता हुआ ,
कर्म को अधर्म से भ्रष्ट करता हुआ ,
सच्चरित्र को लांछित करता हुआ ,
शोषित को न्याय वंचित करता हुआ ,
चिंतनविहीन मनस में सुप्त होता हुआ ,
आत्मस्तुति एवं अहं में लिप्त होता हुआ ,
यथार्थ छोड़, कल्पित वारिद में
विचरण करता हुआ,
वाणी से विचारधारा को
संक्रमित करता हुआ ,
कुचक्र के मायाजाल में फंसता हुआ ,
पाप के दलदल में धंसता हुआ ,
समय रहते संज्ञान ले !
प्रायश्चित कर ! सत्य का कटुपान ले !
वरना ये पथ तुझे अधोगति ओर ले जाएगा ,
पाप के भंवर में डूबा तू कभी न उबर पाएगा।