Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Jul 2021 · 2 min read

प्रायश्चित्त

भास्कर ने उषा के साथ आँखें खोली ही थी कि चिडि़यों की चहचहाहट ने सम्राट अशोक को नींद से जगा दिया।
“बस एक और विजय, और फिर समस्त आर्यावर्त मेरा हो जाएगा।” इसी सोच ने अशोक मौर्य के चेहरे पर मुस्कान ला दी। तभी शिविर में सेनापति ने प्रवेश किया।
“देवनाम्प्रिय अशोक, सेनापति का प्रणाम स्वीकार करें।”
“युद्ध के क्या समाचार हैँ?” गंभीर मुद्रा में अशोक ने पूछा।
“सुखद समाचार हैँ सम्राट! कलिंग अब हमारा है। यद्यपि कलिंगवासियों ने अद्भुत शौर्य प्रदर्शन किया, परंतु हे प्रियदर्शी! हमारी शूरवीरों से सुसज्जित सेना ने कलिंग को तहस-नहस कर दिया। अब वहाँ विलापरत् स्त्रियों के अतिरिक्त कोई पुरुष शेष नहीं बचा।”
“क्या कह रहे हो, सेनापति?” विजयी मुस्कान अचरजता से भर गई सम्राट की।
“क्या संपूर्ण कलिंग युद्ध करने आ गया था!” सम्राट ने चकित होकर पूछा।
“कदाचित् ऐसा ही लग रहा है सम्राट; क्योंकि युद्ध क्षेत्र शत्रुओं के शवों से पटा हुआ है। एक लाख से भी अधिक क्षत-विक्षत शव हैं और एक लाख से भी अधिक शत्रु सैनिकों को बंदी बनाकर उन्हें राज्य से निर्वासित कर दिया गया है। वे भी गंभीर रूप से घायल हैं सम्राट, आक्रमण का पुनः विचार भी नहीं करेंगे।”
सेनापति गर्वित होकर बखान करता जा रहा था परंतु इधर सम्राट विचलित दिखाई पड़ रहे थे। विकलता उनके मुख पर दिखाई दे रही थी। हथेलियों को आपस में रगड़ते हुए वे इधर-उधर विचरण कर रहे थे।
अचानक उनका चेहरा सपाट हुआ और उन्होंने सेनापति से रणक्षेत्र की ओर चलने के लिए कहा।
** ** ** **
रणक्षेत्र की विभित्सता अपने चरम पर थी। यह दृश्य देखकर सम्राट की आँखें पथरा गई। जिसके नामसे ही लोग थरथराने लगते थे, आज उसी विश्व विजेता व क्रूर अशोक की टाँगें काँप रही थी।
सरविहीन शव, धड़विहीन शव, कौवे व गिद्धों द्वारा नोचते शव; रक्त की नदियों का सैलाब मानो टूट पडा़ था। मैदान की भूमि तो अदृश्य ही थी। इतना रक्त-पात हुआ था मानो कोई नर-पिशाच काल बनकर निर्दोष मानवों पर टूट पडा़ था।
इस दृश्य ने सम्राट अशोक के हृदय को द्रवित कर दिया। वे मैदान में ही मूर्च्छित हो गए और जब उनकी मूर्च्छा टूटी तो वे विलाप करने लगे।
“हे प्रभु! मुझ आततायी को क्षमा नहीं किया जा सकता। मैंने सदा निर्दोष मनुष्यों का रक्त बहाया है। मेरी साम्राज्य विस्तार की लालसा ने न जाने कितने स्त्रियों की मांग को उजाडा़ है। हे प्रभु मेरा पश्चाताप तो संभवतः व्यर्थ ही है। मैं तो एक क्रूर हत्यारा हूँ, मेरा प्रायश्चित स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
एक महान सेनानायक आज रणक्षेत्र के मध्य करुण विलाप कर रहा था। दिशाएँ भी मानों ठहर गई थी। आँसुओं ने एक क्रूर शासक को दयालू हृदय का प्रजापालक स्वामी बना दिया।
निगोध नामक भिक्षु ने सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म की दिक्षा दी।
और इस तरह एक महान योद्धा धम्म का संरक्षक बन गया।
सोनू हंस

1 Like · 3 Comments · 328 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मैं एक श्रमिक।
मैं एक श्रमिक।
*प्रणय*
संघर्ष ज़िंदगी को आसान बनाते है
संघर्ष ज़िंदगी को आसान बनाते है
Bhupendra Rawat
3598.💐 *पूर्णिका* 💐
3598.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
यूंही नहीं बनता जीवन में कोई
यूंही नहीं बनता जीवन में कोई
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
गहरे ध्यान में चले गए हैं,पूछताछ से बचकर।
गहरे ध्यान में चले गए हैं,पूछताछ से बचकर।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
सब्जी के दाम
सब्जी के दाम
Sushil Pandey
"सदियाँ गुजर गई"
Dr. Kishan tandon kranti
जीते जी मुर्दे होते है वो लोग जो बीते पुराने शोक में जीते है
जीते जी मुर्दे होते है वो लोग जो बीते पुराने शोक में जीते है
Rj Anand Prajapati
ज़िन्दगी चल नए सफर पर।
ज़िन्दगी चल नए सफर पर।
Taj Mohammad
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
उदर क्षुधा
उदर क्षुधा
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
इश्क़ और चाय
इश्क़ और चाय
singh kunwar sarvendra vikram
वो दौर था ज़माना जब नज़र किरदार पर रखता था।
वो दौर था ज़माना जब नज़र किरदार पर रखता था।
शिव प्रताप लोधी
वेदना
वेदना
AJAY AMITABH SUMAN
दो रुपए की चीज के लेते हैं हम बीस
दो रुपए की चीज के लेते हैं हम बीस
महेश चन्द्र त्रिपाठी
ऋतु गर्मी की आ गई,
ऋतु गर्मी की आ गई,
Vedha Singh
घर के आंगन में
घर के आंगन में
Shivkumar Bilagrami
सदद्विचार
सदद्विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
किसी और से नहीं क्या तुमको मोहब्बत
किसी और से नहीं क्या तुमको मोहब्बत
gurudeenverma198
Some times....
Some times....
Dr .Shweta sood 'Madhu'
सारे रिश्तों से
सारे रिश्तों से
Dr fauzia Naseem shad
दोहा __
दोहा __
Neelofar Khan
*जिसने भी देखा अंतर्मन, उसने ही प्रभु पाया है (हिंदी गजल)*
*जिसने भी देखा अंतर्मन, उसने ही प्रभु पाया है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
मुझे लगता था किसी रिश्ते को निभाने के लिए
मुझे लगता था किसी रिश्ते को निभाने के लिए
पूर्वार्थ
आवाज मन की
आवाज मन की
Pratibha Pandey
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
साहित्य गौरव
देश से दौलत व शुहरत देश से हर शान है।
देश से दौलत व शुहरत देश से हर शान है।
सत्य कुमार प्रेमी
प्रेरणा
प्रेरणा
Shyam Sundar Subramanian
*दीवाली मनाएंगे*
*दीवाली मनाएंगे*
Seema gupta,Alwar
कभी जिम्मेदारी के तौर पर बोझ उठाते हैं,
कभी जिम्मेदारी के तौर पर बोझ उठाते हैं,
Ajit Kumar "Karn"
Loading...