*प्राप्त तुम्हे यह अधिकार *
निर्ममता के निर्मम बन्दों ,प्राप्त तुम्हें यह अधिकार।
अपनी थपकी गोद सुलाते , औरों को देते दुत्कार ।।
अपनी खुशियां अप में बांटे, में माँगूँ तो जमकर डांटे।
मेरी छोटी सी भूलों पर , क्रोधित होते हो सरकार ।
निर्ममता————————————————–।1।
यह अन्याय नही तो क्या है न्याय,
शेष दुसरा— क्या——है— पर्याय।
आँख मूंदकर दे देते हो ,कुटिल कुटिल सी फटकार ।
निर्ममता————————————————–।2।
इससे बढ़कर क्या है अंधेर
मुझे मानते कीचड़ का ढेर ।
भर अंजुली में गंदेपन को , फेंक रहा तेरा परिवार ।
निर्ममता ————————————————-।3।
अंगम संगम सब हैं तेरे
लगा रहा चौतरफा फेरे ।
सहज खींचता जाता मानों,अधिकृत ले अपनी पतवार।
निर्ममता————————————————-।4।
सनी पुती चोंचें कहाँ धोयी,
बने घूमते– हो —–निर्मोही।
क्लुशेपन की राहों में , दिखा रहे –हो –दीपक चार ।
निर्ममता————————————————-।5।
अमल धवल सा चोला पहने,
ढोल मंजीरे ताल और गहने ।।
झूट भजन के गीतों का , रोज– जोड़ते –हो दरवार ।
निर्ममता————————————————–।6।
घोर कालिमा तुमने बोई ,
कब त्यागेगा बोल बटोही।
या आकर इस अभिनय तल पर,मच जाएगा हाहाकार।
निर्ममता—————————————————।7।