“प्राथमिक – विकल्प”
तुम्हारी “प्राथमिकता” मे नही मेरा अस्तित्व
तो,
“विकल्प”मे मुझे भी स्वीकार्य नहीं
कभी तोला तो कभी माशा
जैसी स्थिति,
मुझे खुश नहीं कर सकती।
हाँ…मैं लालची हूँ,स्वार्थी भी
या मैं “सदैव”मे रहूँ
या फिर बिल्कुल नहीं…
बीच कुछ स्थिति मे
कतई समझौते पर राजी नहीं
मेरा अस्तित्व सुविधानुसार
प्राथमिकता मे ‘समाप्त’और
विकल्प मे ‘जीवित’ नही हो सकता।
©निकीपुष्कर