प्राणों में हो मधुमास
सूर्य ने फेंका
किरण का जाल
जा अटकी चिरैया
मेरे मन की,
देख कर
बदरी की काली रात
भर आई
कोर क्यों तेरे नयन की
नाचता प्राणों में हो मधुमास
कलियाँ गा उठें
सारी चमन की
इन्द्र धनुषी रंग
मुस्काने सजन की
या शरद की धूप
ज्यों मेरे अंगन की
देख घिरता गगन
किस को यातना होगी
चुभन की
संग मेरे झूम
कलियाँ कह रहीं
मेरे कंगन की
देख यह जग मुस्कराता है
वृथा बातें सपन की
भर नया उत्साह
चुरा लो मुस्कराहट
तुम किरन की
बाल रवि का मधुर
यह संदेश
देती लालिमा है घन-गगन की