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4 Aug 2021 · 1 min read

प्राकृतिक आपदा

मनहरण घनाक्षरी
°°°°°°°°°°°°°°°°

कहीं कहीं सूखा कहीं,
बाढ़ की विभीषिका है।
कहीं पर जंगलों में ,
आग है पसरती।

कहीं ज्वालामुखी कहीं,
फटते है बादल तो।
कहीं पे भूकम्पनों से,
शिला है दरकती।

तेज धूप कहीं कहीँ,
लोग भूखे मरे कहीं।
पेड़ों की कमी से आँधी,
घर है उजारती।

कहीं ठिठुरन बस,
बेहताशा लोग मरे।
कहीं तीव्र धूप बस,
बरफ़ पिघलती।

कहीं पानी बिन देखो,
पड़ता अकाल भाई।
लहरें समुद्र कहीं,
सुनामी उफनती।

जाने ऐसी बुद्धि काहे,
लोग तो लगा रहे हैं।
जिसके कारन अब,
आपदा पसरती।

बुद्धिमान होना भी तो,
जरूरी है सबको ही।
कुबुद्धि विकास की है,
चुहिया कतरती।

यदि हमें अपनी ब,
चानी आगे पीढ़ियाँ तो।
बुद्धिमता बस तुम,
बचा लो यह धरती।

★★★★★★★★★★★
अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.
★★★★★★★★★★★

1 Like · 2 Comments · 369 Views
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