प्राइवेट शिक्षकों की दारुण व्यथा
—–गीत—–
आइना ज़िन्दगी का दिखाता हूँ मैं
कैसे कटते हैं अब दिन बताता हूँ मैं
आइना०—–
1-
क़र्ज़ का बोझ सर पर है भारी लदा
जाने क़िस्मत में है मेरे क्या क्या बदा
ये व्यथा अपने दिल की सुनाता हूँ मैं
आइना०——
2-
पाठशाला भी बरसों हैं बन्द जब
आय के स्रोत की गति हुई मन्द जब
पूछो मत किस तरह घर चलाता हूँ मैं
आइना०——-
3-
अब तो फाँकों के भी लाले पड़ने लगे
भूख से मेरे बच्चे भी मरने लगे
सब्र का घूँट इनको पिलाता हूँ मैं
आइना०——
4-
खेल करती सियासत महामारी पर
है नज़र किसकी अब मेरी दुश्वारी पर
कितना लाचार अब ख़ुद को पाता हूँ मैं
आइना०——–
5-
बिजली वाहन के बिल अब भरूँ किस तरह
मरना चाहूँ भी तो मैं मरूँ किस तरह
अब तो आँसू ही निश-दिन बहाता हूँ मैं
आइना०——
6-
इक तो मज़बूरियों से ही मैं तंग हूँ
उसपे सरकार की चाल से दंग हूँ
दुख ये हर पल ही “प्रीतम” उठाता हूँ मैं
आइना०——–
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्ती (उ०प्र०)
9559926244