प्रह्लाद
प्रह्लाद!
बुआ से बचकर रहना
तुम्हारी बुआ आज भी जिंदा है
वो बार बार तुम्हें लेकर जलती चिता पर बैठेगी
पर हर बार जलोगे तुम ही
वो बचती रहेगी
छल,छद्म जीतता रहेगा
और हारते रहोगे
तुम
जानते हो प्रह्लाद!
इस युग मे भगवान भी नही आते
हाँ फटते हैं आज भी कई खंभे
पर वहाँ ईश्वर नहीं निकलते
निकलते हैं कई और
हिरण्यकशिपु
पल्लवित होता है उनका साम्राज्य
पुष्पित होती है होलिका
तुम्हे जलाकर
तुम्हारी चिता से उठती लपटें
जब ईश्वर से सवाल करती हैं
तो ईश्वर भी मौन होकर
चुपचाप तुम्हें देखता है
जब तुम कहते हो कि
भगवान नृसिंह ने
तुम्हारी रक्षा की थी
तो खुद ईश्वर ही
तुम्हारी इस बात को
नकार देता है
और लज्जित हो जाते हो तुम
और खुद बिना किसी बुआ के
आत्महत्या करने को
आतुर होकर
कोसते हुए
सारी व्यवस्था को
खुद ही
चिता पर बैठ जाते हो।
– -अनिल मिश्र