प्रहार राजनीति पर
यह वज्र है प्रहार कर प्रहार कर बहादुरो।
विनाश‚ध्वंस‚नष्ट–भ्रष्ट किये चलो बहादुरो।
बहुत हुआ विहान कैद में रखे–रखे हुए।
धुंध‚कोहरे‚अन्हार से ढ़के–ढ़के हुए।
जन्म को मरण मिले‚जनम हमें पर क्यों मिला?
यह सोच मत‚दोस्तो है सृष्टि का यह सिलसिला।
जनम पे अपने गर्व कर न सिर धुनो बहादुरो।
दरिद्र धन से हो तो क्याॐ न मन से हो बहादुरो।
तुम्हें जो न्याय दे सके वो है प्रजा तुम्हारा तंत्र।
रखो इसे अक्षुण्ण तभी ही रह सकोगे तुम स्वतंत्र।
अगर इसे बना रहा है राजतंत्र का किला।
कदम उठा व ढ़ेर कर‚कर नहीं कोई गिला।
अगर बपौती कर रहा न रूक‚न थम‚न सोच कर।
बस प्रहार कर अपने ‘मत’से अब प्रहार कर।
“मत” तुम्हारा वज्र है ‘अराज’ का दे कर ही अन्त।
तो कर प्रहार ऐ मनुजॐ ध्वस्त कर दे अब तुरन्त।
सुबह के सूर्य को निकाल अस्त्र अपना अब सम्हार।
वोट केवल है नहीं है वज्र का कठोर धार।
भूख से उदर गया हो प्यास से व कंठ द्वार।
देह तो रहा नहीं दीखता है बस कंकाल।
ओठ की हंसी बुझी‚बुझी है देहरी व द्वार।
कहीं न छाँव बच सकेगा जो न कर दिया प्रहार।
समाज का गठन हुआ‚दिशा इसे मिला सही।
नहीं परन्तु दीखता है ध्येय इसका है कहीं ।
प्रहार कर सको तो मुक्ति मिल सकेगी दोस्तो।
समानता को रण लड़ो उठो लड़ो तो दोस्तो।
मनुज के सोच पर‚विचार पर‚‘वाद’ पर प्रहार कर।
विचार शुन्य बैठकर रहो न चुप‚ प्रहार कर।
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