‘प्रहरी’
देखो अद्भुत प्रहरी बनकर,डटकर बैठा है सीमा पर।
देश की आन-बान की ख़ातिर,
जीता है प्राण हथेली पर रखकर।
साक्षी हैं उसके ये पर्वत और नदिया,
है किसी का बेटा किसी का भैया।
है सिंदूर मांग का भी वह
किसीका,
किसी के जीवन का वो चलता पहिया।
है उसको भी घर की याद सताती,
गाँव की गलियां उसको भी भाती।
कर्तव्य की ख़ातिर वो सब सह जाता,
उसको भी प्रिय की याद सताती।
देश की ध्वजा सदा लहराती रहे,
जनता हर खुशियाँ मनाती रहे।
वो वीर तपस्या में तना है रहता।,
भारत माँ हो निर्भय मुस्कुराती रहे।
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स्वरचित-
Godambari Negi
हरिद्वार उत्तराखंड