प्रस्तुति : ताटक छंद
प्रस्तुति : ताटक छंद
मापनी : 16: 14 पदान्त 222
गीत
मस्ती है हुड़दंग मचा है , मतवालों की टोली है ।
रंगबिरंगी हुई धरा है , करते रंग ठिठोली है ।।
उमर लिए अँगड़ाई है तो , मन किलकारी मारे है ।
बच्चे , बूढ़े हुए जवां हैं , भर पिचकारी मारे है ।
उम्मीदें हैं रंग बिरंगी , मुस्कानें , भर झोली है ।।
रंगबिरंगी हुई धरा है , करते रंग ठिठोली है ।।
नव रस , रंग सरीखे बिखरे , जीवन फाग सुनाए है ।
जिसके हिस्से जो है आया , उसमें डूबा जाए है ।
झाँक रही है घर घर ख़ुशियाँ , नीयत फिर भी डोली है ।।
रंगबिरंगी हुई धरा है , करते रंग ठिठोली है ।।
टूटी है संवादहीनता , भाव जगे हैं न्यारे से ।
टेसू जैसे खिले हृदय हैं , जोड़ें बंधन प्यारे से ।
आज दुखों को धता बताती , गगन सजी रंगोली है ।।
रंगबिरंगी हुई धरा है , करते रंग ठिठोली है ।।
रंग चढ़े मुश्किल से छूटे , तन मन को छू जाते हैं ।
पुलिकत पल छिन हिस्से आये , भाव जगे मदमाते हैं ।
लिए मधुरता संबंधों में , मिले गले हमजोली है ।।
रंगबिरंगी हुई धरा है , करते रंग ठिठोली है ।।
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्य प्रदेश )