प्रसन्नता स्वभाव का अंग हो
लघुलेख
प्रसन्नता स्वभाव का अंग हो
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प्रसन्नता शब्द ऐसा है कि जिसकी संपूर्ण व्याख्या की ही नहीं जा सकती। प्रसन्नता सिर्फ भाव है, अहसास है, महसूस करने की भावना मात्र है।
प्रसन्न होना, रहना हमारे स्वभाव का हिस्सा है। इस धरती पर विभिन्न स्वभावों के मनुष्य हैं और सबकी प्रसन्नता का अहसास, मनोवैज्ञानिक आधार भिन्न भिन्न होता है।
मगर हमारे जीवन में प्रसन्नता का अलग ही महत्व है। हमें खुशहाल जीवन के लिये प्रसन्नता को अपनी दैनिंदनी में शामिल करना चाहिए। छोटी से छोटी खुशी का भरपूर आनंद लेना चाहिए। छोटी हो या बड़ी समस्या, रोने, मायूस होने, खुद को या किस्मत को कोसने से हल मिलने वाला नहीं है। बल्कि प्रसन्नता के साथ हर समस्या को हम बेहतरीन तरीक़े से हल कर सकते हैं। हम प्रसन्न रहेंगे, तो हमारा परिवार, हमारे आसपास के लोग भी उसका अनुसरण ही करेंगे। तब हमारे इर्दगिर्द प्रसन्नता का जो वातावरण तैयार होगा ,वो नई उर्जा, उमंग, उत्साह का संचार करेगा। हमारा जीवन नये जोश और आत्मबल के साथ आगे बढ़ेगा।तब बड़ी बड़ी समस्याएं छोटी और सामान्य सी महसूस होंगी। तब हमारे जीने का अंदाज भी जुदा होगा।जिसमें निराशा और आंँसुओं के लिये स्थान ही नहीं होगा।
अतएव सर्वश्रेष्ठ यही होगा कि जीवन की हर जरूरत की आवश्यकता के साथ प्रसन्नता को भी न केवल अपने जीवन में शामिल कीजिए, बल्कि प्रसन्नता को अपने स्वभाव का अंग बना लीजिये। फिर देखिये प्रसन्नता आपके जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन लेकर ही आयेगा।तब आपके जीवन में जो बदलाव दिखेगा, उससे आप खुद आश्चर्य से देखते रह जाएंगे।
आइए! प्रसन्नता को अपने स्वभाव में शामिल करें और नव परिवर्तन का अब से श्री गणेश भी।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
©मौलिक, स्वरचित