#प्रसंगवश-
#प्रसंगवश-
■ असली सेंटा हमारे पेरेंट्स
● एक-दो नहीं, पूरे 365 दिन के लिए।
【प्रणय प्रभात】
हमारी संस्कृति हमे एक दिन के देवदूत या फ़रिश्ते से प्रभावित होने की अनुमति नहीं देती। वो हमें जन्म और जीवन देने वाले उन अभिभावकों से प्रेरित होने की प्रेरणा देती है, जो हमारे लिए इस धरा-धाम पर उपलब्ध साक्षात देवतुल्य हैं। वो भी एकाध दिन के नहीं उम्र भर के लिए।
अभिभावक (माता-पिता) हमे जीवन-पर्यंत अपना शुभ आशीर्वाद व दुलार तो देते ही हैं, वो सब कुछ देते हैं जो प्रायः उनकी सामर्थ्य से भी परे होता है। माता और पिता के प्यार-दुलार व संस्कार से बड़ा उपहार भी भला कुछ और हो सकता है। वो सौभाग्यशाली हैं जो 365 दिन अपने जन्मदाता, पालक, पोषक, प्रोत्साहक व संरक्षक वास्तविक सेंटा (संत) दंपत्ति की छत्रछाया में पुष्पित, पल्लवित व सुरभित होते हैं। छत्रछाया चाहे स्थूल हो या फिर सूक्ष्म, सदैव हमारा साहस व संबल होती है। अब यह हम पर निर्भर है कि हम उनके प्रति किस हद तक कृतज्ञ रह पाते हैं।
संसार के किसी भी धर्म या उससे जुड़ी किसी परिपाटी पर प्रहार या उसका उपहास न मेरा उद्देश्य है, न अधिकार। मंतव्य उन स्वधर्मियों को अपनी महान परम्परा और विरासतों के हवाले से अकारण अंधानुकरण की गम्भीर चूक से परिचित कराना भर है। जो सिवाय पाखंड और नाटकीयता के कुछ और नहीं।
जहां तक एक धर्म, पर्व व उससे जुड़े प्रतीक व उपक्रमों का सवाल है, उनके विरोध का भी कोई औचित्य नहीं। हमारा धर्म, हमारी संस्कृति इसके लिए प्रेरित भी नहीं करती। हम वर्ष भर उत्सव की सनातनी परम्परा के संवाहक किसी के उत्सव या उत्साह में बाधक भी क्यों बनें? “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया” की चिरंतन अवधारणा के प्रबल पक्षधर हों तो उपहास, उन्माद या अकारण प्रतिरोध की भेड़-चाल से दूर रहें। अंततः मुझे मेरे पर्वों पर निस्संकोच बधाई व शुभकामनाएं देने वाले ईसाई मित्रों व उनके परिजनों को हैप्पी क्रिसमस।।
जय जय सियाराम।
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●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)