प्रश्न-पत्र
मेरे
हूँ,
हाँ ठीक है!!
एक दम,
को सुनकर
तुम एक पल विस्मित होकर,
फिर एक हाथ से
दरवाजे की चौखट पकड़कर,
जब ये पहला प्रश्न
मेरी ओर फेंकती हो
कि,
बताओ तो मैंने अभी क्या कहा?
तो अचानक से आया ये एक प्रश्न –
“प्रश्न-पत्र” में तब्दील होकर
बरबस ही
हाथों से छूट जाता है।
उसके बाद,
“तुमसे तो बात करना ही बेकार है”
“तुम्हे तो मेरी परवाह है ही नही”
और न जाने कितने “विशेषणों”
से बचता हुआ,
मैं खुद को सीधा स्कूल की बेंच पर खड़ा पाता हूँ ।
जिसकी चोरी पकड़ी गई हो।
तुम्हारी ओर तकती, झुकती कातर आंखे ,
खुद को कोसते हुए ,
कि “बुरे फंसे”
और इस बीच,
एक पक्का होता यकीन कि,
“आज ये कक्षा फिर एक बार लंबी चलेगी!!!”
पर स्कूल के दिनों की लगी
ये बुरी आदत,
कमबख्त छूटती भी तो नही!!!!