प्रश्नों के उत्तर
****** प्रश्नों के उत्तर *****
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तुमने गाँठ हृदय की खोल दी
मेरे काँधें पर सिर रख रो दी
मैंने तुमको यूँ ही समझ लिया
पहेली दिल की यूँ ही खोल दी
प्रश्नों की जो झड़ी लगाई थी
उत्तर के बर्तनों में है उड़ेल दी
मुँह से तुमने जो भी बोला था
उन कथनो की ढ़ेरी है तोल दी
तुम खुद हो उत्तर हो प्रश्नों के
सफेद पन्नों पर स्याही डोल दी
कुछ दूर फैला हुआ अंधियारा
उजियारों की बत्ती है खोल दी
तुम साथ हमारे ही हो ली हो
एकांतवास की पीड़ा फोड़ दी
कबसे तुम्हें हम समझ पाए हैं
नासमझी की परत निकाल दी
मनसीरत इन्तजार है खत्म हुई
गहरी नींद मे आँखें हैं खोल दी
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)