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6 Oct 2020 · 2 min read

प्रवृत्तियांँ

मनुष्य में मानवीय एवं राक्षसी प्रवृत्ति दोनों का वास होता है जो मनुष्य के व्यवहार को संचालित करता है।
मानवीय प्रवृत्ति की अधिकता उसे मानवीय गुणों से संपन्न श्रेष्ठ बनाती है।
जबकि राक्षसी प्रवृत्ति की अधिकता उसे क्रूर और संवेदनहीन बनाती है।
मनुष्य के बचपन में पोषित संस्कारों से मानवीय गुणों का विकास होता है ।
तथा जैसे-जैसे समय गुजरता है , उसकी सोच में वातावरणजन्य परिवर्तन आने लगतें हैं ।
अतः उसके आचार विचार एवं व्यवहार में उसमें निहित संस्कारों एवं वातावरणजन्य विकसित मानसिकता का प्रभाव देखा जाता है ।
अधिकांशतः बच्चों में बड़ों का अनुसरण करने की प्रवृत्ति पाई जाती है। बड़े जैसा व्यवहार करते हैं वैसा ही व्यवहार बच्चे करने का प्रयास करते हैं।
बच्चों में कुछ अनुवांशिक गुण भी पाए जाते हैं जो उनके व्यवहार परिलक्षित होते हैं।
अतः बच्चों में पोषित संस्कार एवं आदर्श की भावना में इस प्रकार के कारकों की अहम भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है।
बचपन में पोषित संस्कारों का दूरगामी प्रभाव मनुष्य के जीवन पर पड़ता है।
जिनसे उनमें मानवीय एवं राक्षसी प्रवृत्तियों का अंतर्निहित विकास होता है ।
समाज में मानवीय प्रवृत्ति या राक्षसी प्रवृत्ति की अधिकता , उन्हें सहृदय मानव एवं दुष्ट संवेदनहीन आतता के रूप से परिभाषित करती है।
अतः जनसाधारण में इन दोनों प्रकार की प्रवृत्तियों के मनुष्यों का समावेश होता है।
मानवीय प्रवृत्ति की अधिकता मनुष्य को संवेदनशील , सहिष्णु एवं कर्म प्रधान मानव बनाती है।
जबकि राक्षसी प्रवृत्ति की अधिकता संवेदनहीन कामुक ,क्रोधी एवं लोभी मानव को कुत्सित मंतव्य से युक्त दानव की श्रेणी में ला खड़ा करती है।
आधुनिक युग में राक्षसी प्रवृत्तियों की अधिकता मनुष्य के विनाश का कारण बन रही हैंं।
जब तक इन प्रवृत्तियों पर नियंत्रण नहीं किया जाता , तब तक शांति एवं सद्भाव कायम नहीं किया सकता है।

Language: Hindi
Tag: लेख
7 Likes · 4 Comments · 564 Views
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