प्रवासी
मैं
पंखे कूलर में
बैठा घर पर
अनुमान लगा
रहा था
ताप का
40 नहीं 43
डिग्री है
आज ताप
कभी
गिरता पर्दे
तो कभी
बंद करता
खिड़की
धूप की आती
चकाचौंध
प्यास
है कि
बूझती नहीं
मटके का तो
कभी
फ्रिज का
ठंडा पानी
जब
देखा हाल
प्रवासी
श्रमिकों का
न पानी
न खाना
न चप्पल
कड़कड़ाती
धूप
धरा आसमां में
ताप
विचलित
हो गया
मैं
अब
कूलर पंखे की
हवा
भाती नहीं
है
बस
यही कामना
पहुँचे सुरक्षित
अपने मुकाम
अपने घरोंदे
छोटे छोटे बच्चे
महिलायें और
हमारे
प्रवासी मजदूर भाई
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल