प्रवासी की पद यात्रा
प्रवासी की पद यात्रा
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अपने गांव , जिला और प्रदेश छोड़कर चल पड़ा बीवी बच्चों के साथ दूसरे नगर
साथ लेकर चंद रूखी रोटीयों के साथ
नंगे पांव ,फटे पुराने कपड़े लेकर
बहुत सारे सपनों के साथ
काम मिलने की खुशी में बनाए नमक के चावल और की अपने भगवान की पूजा
अभी ठीक से जमें भी नहीं थे पांव और बंद हो गई मशीन
रूक गये बस, टेमपू और रेल गाड़ियों के पहिए
तेज गर्मी
तपती सड़क नंगे पांव
सूखते होंठ और पेट में भूख का दर्द लिए बढ़ने लगे अपने गंतव्य की ओर……..
सरकारी सहयोग बंद
मानवता डरी हुई
पुलिस के डंडे उफ़ ये जिंदगी भी क्या जिंदगी है
आंखों में टूटे सपनों के साथ बह रहे थे लाचारी के आंसू
कमाने की होड़ में खो दिये थे इस सफ़र में कितनों ने
अपने बच्चे
अपनी पत्नी
और ….. अपने पति
पाने की इच्छा में लौट रहे थे प्रवासी बहुत कुछ खोकर उसी घर को जहां से चले थे वो कुछ लाने के लिए।
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डॉ. नरेश कुमार “सागर”
01/02/2021