प्रवासी का दर्द
………..कविता
प्रवासी का दर्द
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घर से निकले थे बहुत सारी उम्मीदों के साथ
ढेर सारे सपने लिए
और
घनी सारी जिम्मेदारीयों के साथ
प्रवासी बनकर
कुछ दिनों दिक्कतों की उठा पटक के साथ हो गये स्थापित
और एक दिन अचानक एक महामारी के चलते होने लगे वापसी
उधर …….
जिधर छोड़कर आये थे
जन्म भूमि
टूटा- फूटा घर
परिवार और
बचपन की यादें
और वापिस ले जा रहें थे
टूटे सपने
अधूरी जिम्मेदारी
भूख- प्यास
पांवों में छाले
पैदल लम्बी यात्रा
और खो दिये थे कितनों ने अपने खून के रिश्ते……..
हाथ आयी तो बस हतासा
निराशा और वही
जार -जार रोती बिलखती ज़िन्दगी और घुटन।
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मूल रचनाकार…..
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
30/01/21…. रात्रि….12.51