” प्रवासिओं का दर्द “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
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कोरोना तो
बहाना है ,
हमें प्रवासी
मजदूरों को
अपने राज्यों से
भगाना है !
ऐसा मौका
भला फिर
कहाँ आएगा ?
फिर कहाँ कैरोना का
कहर टूट पायेगा ?
हम समय -समय
पर आन्दोलन
करते रहे ,
अपनी राजनीति- रोटी
सेंकते रहे !
दुसरे प्रान्त के
लोगों को हम
अपने देश में
प्रवासी सोचने लगे ,
वर्षों तक आन्दोलन
की लहर चलती रहीं
लोग मरने लगे !!
दुःख दर्द सहकर
ग्लानिओं की घूंट
हम पीते रहे !
हमने नए नगरों का
निर्माण किया ,
सड़क ,पुल ,
अट्टालिकाएं बनाकर
महानगरों को रूप दिया !!
खुद हम खुले
आकाश तले रहकर
आपके सुनहरे
कल को संवारा है ,
औध्योगिक बुलंदिओं
को छूने को सिखाया है !!
हम मजदूर हैं ,
मजबूर नहीं ,
हमें भगाने का
बहाना मिल गया !
आब प्रान्त ,प्रान्त
खुद में सिमट जायेगा ,
यह देश फिर क्षेत्रीयता ,
वैमनष्यता और
संकुचित रह जायेगा !!
कोरोना के कहरों से
हमें यूँ लगने लगा ,
कि फिर कोई
“रासायनिक युध्य ”
सिरिया में होने लगा !!
प्रवासी शरणार्थी बनने लगे ,
लम्बी -लम्बी कतारों से
अहर्निश चलने लगे !!
भूख ,प्यास ,चिलचिलाती धुप
सर पर गठरियाँ लादकर
अपने गांव की ओर चल दिए ,
बच्चे ,बूढ़े ,बीमार
तन को लिए जंगल ,
पगडंडियों और
सड़कों पर चल दिए !!
पहले हम यदि
अपने गाँव स्वयं आ जाते ,
हमें यह दुःख
झेलना नहीं पड़ता ,
अपने लोगों के बीच
ही हमको सदा रहना पड़ता !!
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड