प्रवक्ता
टेलीविजन की
स्क्रीन पर
आये दिन
कभी ढीली
तो
कभी कसी हुई
रस्सियों पर
बल्ली थामे
दो खम्बो की
दुरियों को कई बार नापने के बाद
एक दिन जब मैं
गिरा और पीठ
सहला ही रहा
था।
तो देखा
कि रस्सी पर करतब
जारी था।
कोई और चल रहा था
मेरी बल्ली को थामे।
मेरे कपड़ो पर,
अब तक के कहे
गए शब्दों की मिट्टी और धूल
चिपकी हुई थी।
अपनी व्यक्तिगत राय
को कोसते हुए,
मैं कपड़े झाड़ता हुआ
उठा।
अब मुझे नए शब्दों
की तलाश थी!!!