#रुबाइयाँ
जिसको भी मानूँ मैं अपना , हो जाता वो बेगाना।
दे जाता ज़ख्मों का हँसके , एक नया वो अफ़साना।
उम्मीदों की चादर है छलनी , गिरगिट भी पानी-पानी।
मानव ने सीख लिया सबसे , अब आगे बढ़ते जाना।
रिश्ते-नाते हारे-सारे , स्वार्थ खड़ा मुस्क़ाता है।
सीधा-सादा पीछे रहता , चालाक बढ़ा जाता है।
आत्मा पर है तम का पहरा , अपनापन कैसे आये।
अपने सुख खातिर अब मानव , मानव को मरवाता है।
श्रेष्ठ नहीं है नीच हुआ अब , पर आगे पछताएगा।
जैसी करनी वैसी भरनी , फल कर्मों का पाएगा।
लोहा-लोहा ही रहता है , सोना-सोना ही रहता,
भेष अगर बदला तूने तो , बहरुपिया बन जाएगा।
अरमानों से खेलेगे तो , इक दिन खुद लुट जाएगा।
पत्थर यार उछालेगे तो , दर्पण न बचा पाएगा।
प्यार दिखाना हाथ मिलाना , दिल से सबके हो जाना,
उदाहरण बन “प्रीतम” सबका , तू होठों पर छाएगा।
#आर.एस.प्रीतम