…….प्रलय सुनिश्चित है !
…प्रलय सुनिश्चित है
#दिनेश एल० “जैहिंद”
चेत नारी चेत
अब नहीं चेतेगी
तो कब चेतेगी
अब भी नहीं चेती तो
प्रलय सुनिश्चित है…..
किसी माला से गूँथकर
अगर नहीं सँवरना है
किसी गुलदस्ते से लगकर
अगर नहीं सजना है
किसी डाली का गुल बनकर
अगर नहीं खिलना है
किसी घर का फूल बनकर
अगर नहीं महकना है
तो बिखरना सुनिश्चित है
कंक्रीट, छड़, ईंट, सीमेंट से मिलकर
रेत महल बना जाती है
मरुस्थल में जो बेजान पड़ी है
कोई कीमत नहीं है उस रेत की
चेत नारी चेत
अब नहीं चेतेगी
तो कब चेतेगी
अब नहीं चेती तो
प्रलय सुनिश्चित है……
प्राकृतिक नियम के सम्मुख
पृथ्वी धुरी पर नाचती है
सूर्य केंद्र में रहकर
ग्रहों को खुद से बाँधे रखता है
सूर्य, बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल
मिलकर सौर परिवार बनाते हैं
आओ तुमसे मिलकर हम
स्वस्थ परिवार बनाते हैं
परिवार परिवार मिलकर
उन्नत समाज फिर
सुंदर संसार बनाते हैं
खेती और बेटी जगत में
परती नहीं छोड़ी जाती हैं
जोत, रोप, खाद, खरी के बिना
हालत बिगड़ जाती है खेत की
चेत नारी चेत
अब नहीं चेतेगी
तो कब चेतेगी
अब भी नहीं चेती तो
प्रलय सुनिश्चित है…..
छोड़ो झगड़ा, छोड़ो स्पर्धा
सुलह कर लेते हैं मिल-जुलकर
छोड़ो शक-सुबहा और ईर्ष्या
गले लग जाते है हिल-मिलकर
कपट, क्लेश, अधर्म सारे
शत्रु हैं हमारे परिवार के
झूठ, छल और बेईमानी
दुश्मन हैं सारे घरबार के
अगर मन में छल-कपट
और चोरी-बेईमानी हो तो
छवि धूमिल हो जाती है नेत की
चेत नारी चेत
अब नहीं चेतेगी
तो कब चेतेगी
अब भी नहीं चेती तो
प्रलय सुनिश्चित है…..
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दिनेश एल० “जैहिंद”
07. 08. 2017