प्रलय की ओर…….
प्रचण्ड ज्वाला है आंखे क्रोध से बरस रही है वातावरण अशांत ,अद्वितीय संभावनाओं के साथ ये क्या,क्या हो गया हमारे धरा को ये जननी कैसी वेश भूसा में है अभी ।
जननी जन्मभूमि किस शोक में डूब गई है हमसे वो इतना क्यों रूठी है ।
विनासकारी आवरण में क्यों खड़ी है प्रलय का आभास क्यों हो रहा है?
आज चारो और मानव त्राहि त्राहि क्यों कर रहा है क्या यह समय का खेल है नहीं – नहीं ये समय का खेल नहीं है हमने जो किया है उसका भुगतान तो करना निश्चित है।।
आओ मानवीय वेश – भूषा में खड़े प्रलय के कारकों अपने पापों का हिसाब लिखा कर जाओ ,अपने कर्मों का फल लेकर जाओ अब आना निश्चित है आयेगा आयेगा वो एक दिन और वक़्त नहीं है तेयार हो जाओ अब सभी ।।।।।
अब महाप्रलय नजदीक है कुछ देर प्रतीक्षा करो।।