लोककवि रामचरन गुप्त मनस्वी साहित्यकार +डॉ. अभिनेष शर्मा
■ न तोला भर ज़्यादा, न छँटाक भर कम।। 😊
ग़ज़ल _ छोटी सी ज़िंदगी की ,,,,,,🌹
औरों की तरह हर्फ़ नहीं हैं अपना;
दुनिया इतनी बड़ी किताब है
प्राकृतिक के प्रति अपने कर्तव्य को,
10-भुलाकर जात-मज़हब आओ हम इंसान बन जाएँ
वाणी वह अस्त्र है जो आपको जीवन में उन्नति देने व अवनति देने
भोर सुहानी हो गई, खिले जा रहे फूल।
गुरु ही वर्ण गुरु ही संवाद ?🙏🙏
प्रेम की तलाश में सिला नही मिला
हौसले के बिना उड़ान में क्या
बन गए हम तुम्हारी याद में, कबीर सिंह