*प्रभो ! सौ-सौ आभार तुम्हारा(भक्ति-गीत)*
प्रभो ! सौ-सौ आभार तुम्हारा(भक्ति-गीत)
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जो कुछ तुमने दिया प्रभो ! सौ-सौ आभार तुम्हारा
(1)
रहने को घर ,खाने को भोजन उपलब्ध कराया
बड़ी कृपा की जो तुमने दी हमें निरोगी काया
देख रहे आऀखों से जग को कानों से सुनते हैं
दिया हमें मस्तिष्क राह मनमर्जी से चुनते हैं
धन्य-धन्य सौ बार नमन आशीर्वाद यह प्यारा
(2)
हम भोले बालक हैं हमको ज्ञात नहीं क्या पाना
वस्तु कौन सी उचित हमें क्या खाना और न खाना
एक पिता के जैसे ही तुम जो है उचित दिलाते
लाख वस्तु हम माॅंगें लेकिन अनुचित कभी न लाते
दूरदृष्टि से युक्त तुम्हारा भगवन मिला सहारा
(3)
जीवन में संतोष परम-धन ,सबसे बड़ा कहाता
शांति और सुख उसको ही ,जो संतोषी हो पाता
लोभ-ईर्ष्या शत्रु हमारे ,क्रोध हमें खा जाता
हिंसा और तनाव सदा अवसादों को ही लाता
शुभ का उदय हुआ शुचिता ने जब भी पॉंव पसारा
(4)
यह जीवन जो मिला हुआ है इसका मकसद जानें
मिले हमें सौ साल किसलिए मतलब यह पहचानें
हमें जानना है खुद को ईश्वर से फिर जुड़ जाना
कण-कण में जो विद्यमान है उसका पता लगाना
उतर-उतर अंतर्मन में उत्तर मिलता है सारा
जो कुछ तुमने दिया प्रभो सौ-सौ आभार तुम्हारा
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उ. प्र.)
मोबाइल 99976 15451