प्रभु श्री राम
कल रात प्रभु सपने में आये
थोड़ा मंद मंद मुस्काये ,
मैने पूछा प्रभु खुश तो हैं अब
जानती हूँ आप ही का खेल है सब ,
प्रभु ये सुन फिर मुस्काये
मैं देखती रही बिना पलक झपकाये ,
फिर भगवन ने अपने पास बुलाया
बड़े प्रेम से मुझे समझाया ,
बोले रघुनंदन….
बात मेरी खुशी की नही
भक्तों के खुशी की है ,
मैं तो हर हाल में खुश हूँ
इतने वर्षों से चुप हूँ ,
देख रहा था अपनों को
उनके विराट सपनों को ,
उनकी मुझमें जो आस्था थी
उनके दृढ़ विश्वास का वास्ता थी ,
मैने तो खुद कर्म में विश्वास किया
अपनों को नही निराश किया ,
इनका भी तो ये कर्म था
मेरे प्रति इनका धर्म था ,
भगवान हो कर इंसान की योनी में आया
फिर कैसे दिखाता सबको अपनी माया ,
त्रेता में मैं लड़ा अधर्म की खातिर
कलियुग में तो अधर्मी हैं बड़े शातिर ,
भक्तों को रहना था कानून के दायरे में
सत्य की जीतना था हर एक मायने में ,
बनवास तो विधि का विधान था
उसको स्वीकारना मेरा अभिमान था ,
उस वनवास से भी घर वापस आया था
दीपों से अयोध्या जगमगाया था ,
आज मैं वनवास से लाया गया हूँ
फिर से अपने घर में बैठाया गया हूँ ,
जैसे तब तैरे थे पत्थर मेरे नाम से
आज तर गया मैं भक्तों के इस मान से ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंंह देेेवा , 05/08/2020 )