*प्रभु लेते अवतार, साधुता विजय-नाद फिर गाती है (हिंदी गजल/ गीतिका)*
प्रभु लेते अवतार, साधुता विजय-नाद फिर गाती है (हिंदी गजल/ गीतिका)
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1
दुष्टों की दुष्टता सदा, अनियंत्रित कब चल पाती है
प्रभु लेते अवतार, साधुता विजय-नाद फिर गाती है
2
मनमानी चलती रहती है, पर केवल थोड़ी हद तक
उसके बाद शक्ति-आलौकिक, दंड-पाश निज लाती है
3
यह प्रवृत्ति मतदाताओं को क्षुद्र प्रलोभन देने की
अर्थव्यवस्था इसकी भारी कीमत सदा चुकाती है
4
फूट डालना सत्ता पाने के ताले की चाबी है
पदलोलुप नेताओं को यह चाबी बहुत लुभाती है
5
टुकड़े-टुकड़े देश कर दिया जातिवाद के दुर्गुण ने
राजनीति दिल इसी खिलौने से लेकिन बहलाती है —————————————-
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451