*प्रभु परशुराम की जय हो 【भक्ति-गीत】*
प्रभु परशुराम की जय हो 【भक्ति-गीत】 ■■■■■■■■■■■■■■■■■■
शिव प्रदत्त फरसा-धारी प्रभु परशुराम की जय हो
(1)
तिथि तृतीय वैशाख शुक्ल का पावन दिन जब आया
पितृ-भक्त श्री परशुराम का शुभ अवतरण कहाया
सबसे करते प्रीति जगत में सबसे मैत्री पाई
हिंसक पशुओं तक से अपनेपन की रीति चलाई
दिव्य आपका फरसा निर्बल से कह रहा अभय हो
शिव प्रदत्त फरसा-धारी प्रभु परशुराम की जय हो
(2)
क्रूर सहस्त्रार्जुन लोभी था घोर अहंकारी था
कामधेनु ले गया चुरा कर वह स्वेच्छाचारी था
सबक सिखाया सहसबाहु को परशुराम ने मारा
लंकापति को सहज जीतने वाला सच से हारा
जिसने पूजा परशुराम को उसका कभी न क्षय हो
शिव प्रदत्त फरसा-धारी प्रभु परशुराम की जय हो
(3)
परशुराम का अर्थ विष्णु के महातेज अवतारी
परशुराम का अर्थ गुरू जिनके भोला -भंडारी
परशुराम का अर्थ वीरता सत्पथ के अनुयायी
परशुराम का अर्थ धरा पर सज्जन को सुखदायी
परशुराम का अर्थ प्रकृति की सात्विक सुंदर लय हो
शिव प्रदत्त फरसा-धारी प्रभु परशुराम की जय हो
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सहस्त्रार्जुन = सहसबाहु
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451