प्रभु जी,हरते सबकी पीर
प्रभु जी, हरते सबकी पीर,
सभी दुखी हैं, सभी व्यथित हैं,
सब ही बड़े अधीर l
काम, क्रोध से जो बच पाते,
क्षमा, शान्ति को जो अपनाते,
वे ही सन्त फकीर l
लोभ, मोह, माया का चक्कर,
इसीलिये तो भटके दर दर,
भर नैनों में नीर l
कर्म करो, फल उस पर छोड़ो,
विषय वासना से मुँह मोड़ो,
बदले तब तकदीर l
तुम जोड़ो सच से ही नाता,
जो मन से प्रभु के गुण गाता,
माथे लगे अबीर l
कोन थाह पा सकता उसकी,
करता वह परवाह सभी की,
सागर सा गम्भीर l
सबका दाता, सबका प्यारा,
सत्य सदा शिव,सबसे न्यारा,
उसको सबकी पीर l
जिसने गाया, उसने पाया,
उसने भी सबको अपनाया,.
तुलसी, सूर, कबीर l
उसका नाम जपेंगे हम सब,
फिर पीड़ा क्यों होगी जब तब,
मन में रख तू धीर l
प्रभु जी, हरते सबकी पीर l