प्रभु की लीला
सत्य कथा
प्रभु की लीला
=========
जीवन में कभी कभी ऐसा कुछ अचानक घटित हो जाता है कि मानव स्वाभाविक रूप से तन,मन,धन,से परेशान हो जाता है ,समय/किस्मत खराब है,ईश्वर भी उसी को परेशान करता जो पहले से ही परेशान है,सब अपनी अपनी कर्म कमाई है,और भी न जाने क्या क्या सोचते हुए और परेशान हो उठता है।लेकिन ऐसा भी नहीं है ।ईश्वर की व्यवस्थाओं में जो,जब,जहाँ, जैसे नियत होता है,वैसे ही सब कुछ मानव जीवन में घटित होता है।ऐसा भी नहीं है कि आनेवाली समस्याओं में हमेशा नकारात्मक भाव ही रहे,बहुत बहुत बार तमाम परेशानियाँ हमारे जीवन के लिए आवश्यक होती हैं।लेकिन उस समय हम समझ नहीं पाते और जब आगे चलकर सकारात्मक भाव या कुछ अच्छा होता है तब हम कहते हैं भगवान जो करता है अच्छा ही करता है।
आपको मैं अपनी आपबीती बताता हूँ।25/26 मई 2020 को मुझ पर पक्षाघात का प्रहार हुआ।एक सप्ताह अस्पताल में इलाज के बाद घर आया।दिन प्रतिदिन सुधार हो ही रहा था।समस्या के हिसाब से कहीं अधिक तेजी से सुधार ईश्वर की ही कृपा कहूंगा।जून 20 भी अपनी गति से खिसक रहा था।
आपको बता दूँ कि 18-19 साल पहले तक मैं साहित्यिक गतिविधियों /लेखन और पत्रकारिता में सक्रिय रहा था,फिर मार्च 2000 में पिता जी के असामयिक निधन के बाद सब कुछ ठप हो गया,इसके लिए मैं किसे दोष दूँ?शायद मैं खुद ही जिम्मेदार हूँ। खैर…..
जुलाई’2020 आते आते कुछ सोशलमीडिया का भी प्रभाव कहिए या मार्ग मिला तो अंदर से मनोभावों को पुनः साहित्यिक सृजन के प्रति प्रेरणा हुई और मैं अपने पुराने सो चुके सृजनपथ पथ पर चल पड़ा।
आश्चर्य इस बात का है कि कोरोना ने मार्च’2020 से ही सभी की वाह्य गतिविधियों पर लगभग पूर्ण विराम लगा दिया था, पूरी तरह घर में कैद होने के बाद भी कभी मन में लेखन का विचार नहीं आया, हाँ पढ़ने के प्रति रूचि थोड़ी जरूर बढ़ी।
अब आप सोच रहे होंगे कि ये सब मुझे बताने का आखिर उद्देश्य क्या है?
दरअसल मैं कहना चाहता हूँ कि पक्षाघात से पूर्व भी दो ढाई माह एकदम खाली होने के बावजूद लेखन फिर शुरू न कर पाना, फिर पक्षाघात का हमला, इलाज, आराम और फिर सृजनपथ पर आगे बढ़ना क्या स्वमेव ही हो गया।शायद नहीं।ये सब ईश्वरीय व्यवस्था के बिना संभव नहीं हो सकता।मैं समझता हू्ँ कि भले ही पक्षाघात ने मुझे शारीरक, मानसिक, आर्थिक आघात पहुँचाया है लेकिन मेरे सो चुके सृजन भाव को पुनः मार्ग भी दे दिया।
आज एक डेढ़ माह में ही मैं विभिन्न विधाओं की सौ से अधिक छोटी बड़ी रचनाओं का सृजन कर चुका हूँ, जो अनवरत जारी है।अनेकानेक रचनाओं को प्रकाशन भी हो चुका है/हो रहा है।अनेक साहित्यिक प्रतियोगिताओं में सतत भागीदारी जारी है।अनेकों सम्मान पत्र मिल चुके हैं।सोशल मीडिया के माध्यम से ही सही देश के लगभग राज्यों में कुछ न कुछ लोग जानने लगे हैं। कहने का आशय यह है कि जहाँ से मैं कट गया था पुनः उस जगह से आगे ही बढ़ा हूँ तो क्या ये मानव जनित है?शायद हाँ या शायद नहीं।
मेरे विचार से ये सब ईश्वर की व्यवस्था का हिस्सा है हम सब मात्र माध्यम के सिवा कुछ नहीं।शायद इसी लिए कहा जाता है कि बिना ईश्वर की इच्छा के संसार में पत्ता भी नहीं हिलता।वही संपूर्ण संसार को अदृश्य रूप से सर्वशक्तिमान के रूप हमें कठपुतली की तरह चलाता है। बस ये हमारे ऊपर है कि हम उसे किस तरह देखते और महसूस करते हैं।
?सुधीर श्रीवास्तव