प्रभु,तुम भक्त जनों के संकट हरते —आर के रस्तोगी
प्रभु तुम भक्त जनों के संकट हरते,
पर मै कष्टों के भण्डार में हूँ |
प्रभु तुम केवल शुद्ध हवा पानी दे दो ,
मै मरने के अब कागार पर हूँ ||
प्रभु,तुम करुणा के सागर हो,
मेरे पास करुणा की एक बूँद नहीं |
इस भवसागर को कैसे पार करूंगा ?
मेरे पास तो कोई भी नाव नहीं ||
प्रभु,तुम तो एक अगोचर हो,
तुम्हारा तो कोई छोर नहीं |
तुम को मै कैसे ढूढूगा अब,
मेरी तो कोई अब बिसात नहीं ||
प्रभु,जब तुम मेरे मात पिता हो,
फिर लालन पोषण की फ़िक्र नहीं |
पर जब मै मात पिता बन जाता हूँ,
बच्चे करते मात पिता की कद्र नहीं ||
प्रभु,जो तुझको याद करता है,
जीवन में अच्छे फल पाता है |
मैंने कभी याद नहीं किया तुमको,
फिर भी अच्छे फल मै पाता हूँ ||
प्रभु तुम तो सबके अन्तर्यामी हो ,
पल पल की बातो को जानते हो |
फिर भी हर बात छिपाता तुमसे ,
पर हर मेरी बात को मानते हो ||
प्रभु,तन मन धन सब कुछ तेरा है ,
फिर मै क्यों कहता हूँ यह मेरा है |
फिर तुझ को क्यों अर्पण करता हूँ ?
जब सारा संसार बनाया ही तेरा है ||
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम (हरियाणा)