प्रभुता
प्रभुता (कुंडलिया)
प्रभुता में मद है भरा,यह मदिरा का सिन्धु।
जान इसे बचकर निकल,य़ह नहिं शीतल इंदु।।
य़ह नहिं शीतल इंदु,नरक का य़ह स्वामी है।
इज्जत की है भूख,बने य़ह नित नामी है।।
कहें मिश्र कविराय,दंभ है जिसमें जगता।
उसमें अतिशय चाह,मिले बस उसको प्रभुता।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।