प्रभामंडल
प्राणीमात्र के स्थूल शरीर आच्छादित जीवंत ऊर्जा चक्र को प्रभामंडल कहते हैं।
इस प्रकार के जीवंत ऊर्जा चक्र की सघनता एवं विरलता उस प्राणी मात्र द्वारा निर्मित एवं निहित अनुवांशिक गुणों के फलस्वरुप उत्सर्जित प्राण ऊर्जा पर निर्भर करती है।
मनुष्य ही नहीं अपितु पेड़ पौधों एवं स्थलचर जलचर , एवं नभचर प्राणियों में भी यह ऊर्जा चक्र विद्यमान रहता है , जो परस्पर उनके संसर्ग में रहने वाले जीवो को प्रभावित करता है।
स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ मनस के आचार व्यवहार एवं विचार से प्रत्येक मनुष्य में यह प्रभामंडल सघनता से विकसित एवं विकरित होता है।
जो उसके संपर्क में आने वाले अन्य मनुष्यों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
जबकि शारीरिक अस्वस्थता ,मानसिक अस्थिरता विचारों की नकारात्मकता एवं संवेदनहीनता, प्रभामंडल के विरलता का कारण बनते हैं।
इस प्रकार के मनुष्य दूसरे मनुष्यों द्वारा सरलता से प्रभावित एवं नियंत्रित किए जा सकते हैं।
निरंतर चिंतन एवं मंथन के फलस्वरूप निर्मित आत्मशक्ति एवं स्वस्थ जीवन शैली निर्वाह , प्रभामंडल को परिमार्जित कर प्रज्ञा शक्ति एवं आत्मिक तेज का निर्माण करती हैं।
जबकि मानसिक अस्थिरता एवं आत्म विश्लेषण की कमी , आत्मिक संतुष्टि के स्थान पर भौतिक सुखों की खोज , मनुष्य को वासना ग्रस्त बनाकर आत्मिक बलहीनता का कारण बनती है।
हमारे दैनिक जीवन में प्रभा मंडल का प्रभाव देखा जा सकता है , जब हम किसी अपरिचित व्यक्ति को देखते ही उससे प्रभावित हो जाते हैं ।
जबकि; हम किसी व्यक्ति विशेष को देखते ही उसके प्रति नकारात्मक भाव से युक्त हो जाते हैं।
यह उन व्यक्तियों का प्रभामंडल है , जो अप्रत्यक्ष रूप से हमारे मस्तिष्क में इस प्रकार की सोच का निर्माण करता है।
जो कल्पना निर्मित मिथक ना होकर यथार्थ की अनुभूति है।