प्रभात
||मतगयंद सवैया ||
लोचन रश्मि निहार मनोहर ,अंतर नेह अलौकिक जागे !
क्षीर प्रभात चिरंतन बिंबित, नूतन अंबर निश्छल लागे !
नागर श्याम विराट विखंडित, प्राण सदा रस सागर माँगे !
सुन्दर छाँव सुकोमल पावन, दीप जला गुरु चेतन आगे !!
छगन लाल गर्ग “विज्ञ”!