प्रदूषण
सागर कचरे से भरे, मलवे से बीमार.
बायो कचरे से हुए, साहिल अब दुश्वार.
साहिल अब दुश्वार, ज्वार भाटा जब आता.
कचरे का अम्बार, बहा सागर ले जाता.
कहें प्रेम कविराय, दुखी होते हैं प्रियवर.
लहरें हैं अनजान, झेलता सब कुछ सागर.
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम