*प्रत्याशी ! तुम विचारधारा के चक्कर में न पड़ो (हास्य व्यंग्य)*
प्रत्याशी ! तुम विचारधारा के चक्कर में न पड़ो (हास्य व्यंग्य)
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प्रत्याशी के पास इतना समय कहाँ है कि वह विचारधारा के चक्कर में पड़ता रहे । किसी भी प्रकार से चुनाव जीतना ही उसका लक्ष्य होता है । विचारधारा के पचड़े में पड़ता तो टिकट नहीं मिल पाता। जिस पार्टी से मांगने गया था ,उसने टिकट देने से इन्कार कर दिया । वहीं से चतुर उम्मीदवार ने अपनी कार का रुख दूसरी पार्टी के कार्यालय की ओर कर दिया। वहां टिकट का जुगाड़ ठीक-ठीक बैठ गया। लेकिन फिर किसी ने टांग अड़ा दी । टिकट कट गया। मजबूरी में तुरत-फुरत एक तीसरी पार्टी को सुबह ज्वाइन किया, दोपहर को टिकट हाथ में लेकर चुनाव लड़ने के लिए खड़े हो गए। अब आप ही बताइए ,विचारधारा किस चिड़िया का नाम है ?
सुबह से शाम तक हर तरह की विचारधारा आती रहती है ,जाती रहती है। विचारधारा तो एक मौसम की तरह है ,जो कभी स्थाई नहीं होती। साल में छह बार ऋतुएँ बदलती हैं।इसी का नाम जिंदगी है। जिस दल में गए ,उसी की विचारधारा का कंबल ओढ़ कर चलने लगे। अगर कोई दिक्कत-परेशानी है तो चार कार्यकर्ताओं के पास जाकर पूछ लिया कि पार्टी की विचारधारा क्या है ?उन्होंने कहा, बैठो विधायक जी ! हम आपको पार्टी की विचारधारा समझा देते हैं । कई लोग आश्चर्य करते हैं कि व्यक्ति पाँच साल तक विधायक और सांसद रहने के बाद भी पार्टी की विचारधारा से अपरिचित क्यों रहता है ?
दरअसल मुद्दे की बात यह है कि विचारधारा में ज्यादा घुसने की जरूरत नहीं है। हर पांचवें साल पार्टी बदलनी पड़ती है । या तो पार्टी टिकट काट देती है या फिर मंत्री बनने की आशा में दूसरी पार्टी को ज्वाइन करना पड़ता है। ऐसे में अगर विचारधारा को दिल पर ले लिया तो जीवन में सफलता के रास्ते पर चलने में मुश्किल आएगी । विचारधारा को हमेशा कपड़ों की तरह पहनना चाहिए। जब जरूरत हो ,दूसरी कमीज पहन ली । यह थोड़े ही कि त्वचा पर स्थाई टैटू बनवा लिया और अब मिटाना मुश्किल पड़ रहा है !
वे लोग कितने मजे में हैं जिन्होंने विचारधारा से अपना छत्तीस का आंकड़ा रखा । विचारधारा को अपने निवास के परिसर में घुसने नहीं दिया। आसपास भटकती हुई दिख गई तो डांट कर भगा दिया। आज जो लोग उत्साह के साथ राजनीति में दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करते दिखाई देते हैं ,इसका कारण उनका विचारधारा-विहीन होना ही है ।
कार्यकर्ताओं को देखिए ! विचारधारा के पीछे अपनी जिंदगी बर्बाद कर देते हैं लेकिन मरते दम तक विचारधारा नहीं छोड़ते । ऐसे लोग कभी तरक्की नहीं करते। कार्यकर्ता बनकर पैदा होते हैं ,राजनीति में आते हैं और कार्यकर्ता बनकर ही दुनिया से चले जाते हैं । उम्मीदवारों को देखो, कैसे मजे मार रहे हैं ! कल तक इस पार्टी में थे ,आज उस पार्टी में चले गए । जिनकी विचारधारा नहीं होती ,यह आनंद उनकी ही किस्मत में लिखा होता है ।
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लेखक :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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