प्रत्यावर्तन
चांदनी के लिए हम चले तो मगर
हर कदम पर अमावस के साए मिले
फूल खिलते रहे पांत झरते रहे
जिंदगानी के दिन यूं गुजरते रहे
उम्र चुकने लगी सांस रुकने लगी
ख्वाब फिर भी नए रोज बनते रहे
फूल चुनने को जब हाथ अपने उठे
शूल चुभने को बाहें चढ़ाएं मिले
हम भी चलते गए वो भी चलते गए
अपनी-अपनी दिशाओं में बढ़ते गए
उनको पर्वत मिले हमको सागर मिले
डूबने हम लगे और वो चढ़ते गए
दर्प की धूप में वो निखरते रहे
पीर की हम नदी में नहाए मिले