प्रतीक
शीर्षक – प्रतीक
विधा – व्यंग्य कविता
परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राजस्थान
मो. 9001321438
वो बेरोजगार है,समझें कुछ
अरे! वो बेरोजगार समझे…!
अरे! बात साधारण नहीं है
भाषा की व्यंजना समझ…!
इतनी सीधी बात नहीं है ये!
समझ लक्षणा से प्रतीक को
वो खुश है अपने में ही….!
नहीं समझें, बेरोजगारी का
मतलब नहीं जाना आजकल
तू नहीं समझेगा व्यंजना को।
कभी प्यार नहीं किया तूने
तुम बेरोजगार नहीं हो न
तुम शादीशुदा जो हो …!
बेरोजगार होते तो बनते
विद्वान भाषा के फिर जानते।
प्यार तभी सच्चा जीवन में
जब आदमी बेरोजगार हो
रोजगार मिला प्यार टूटा
शादी हुई मतलब नहीं समझे
मतलब नौकरी सरकारी मिली
सच्चा प्यार बेरोजगारी में ही
रोजगार वाले करेंगे रंगरेलियाँ
बेरोजगारी और प्यार का साम्य
अद्भुत घटना जीवन की….
अब भी कुछ न समझे…!
प्यार प्रतीक बेरोजगारी का
बेरोजगार होने का मतलब
संकेत है प्यार करने का …
इस तरह शादी अर्थ नौकरी
भाषा पढ़ नौकरी की…!
प्यार की भाषा में है
बेरोजगारी का व्याकरण
बेरोजगारी में काव्यशास्त्र
शादी की भाषा में है
नौकरी का मनोविज्ञान।